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दोस्त बनाने की है अगर आपकी इच्छा तो जरा सम्भल करदोस्त बनाने की है अगर आपकी इच्छा तो जरा सम्भल कर

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हम जब कभी दोस्ती करते है तो उसे बिना जाने पहुंचाने दोस्ती कर लेते है। जिसके कारण हमें बाद में कई समस्याओं से गुजरना पडता है। या फिर वह व्यक्ति हमें कहीं ऐसी समस्या या फिर ऐसे कामों में फंसा देता है। जिससे हमें बाद में पछतावा के अलावा कुछ नहीं रह जाता है। इसीलिए जब किसी से दोस्ती करें तो थोड़ा सोच-समझ कर करें। जिससे कि हमें आगे चलकर कोई समस्या न हो। इसी बारें में महाभारत में कुछ लोगों के बारें में बताया गया है। जिनसे कभी भी दोस्ती नहीं करना चाहिे। अगर आपने ऐसे लोगों से दोस्ती की तो आपके लिए हानिकारक हो सकता है।

जब महाभारत का युद्ध हो रहा था, तो उस समय युद्ध जीतने के बाद युधिष्ठिर राजा बन गए, तब वो कुरुक्षेत्र में तीरों की शैय्या पर लेटे भीष्म पितामह से राजनीति की शिक्षा लेने पहुंचे। भीष्म ने युधिष्ठिर को जितनी भी बातें बताईं वे आज भी हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी है।

पितामह ने ऐसे कई शिक्षा की बाते बताई कि कैसे लोगों से व्यवहार रखना चाहिए या फिर कैसे लोगों से दूर रहना चाहिए। ऐसे में ही पितामह ने ऐसे मित्रों के बारें में बताया जिनसे कभी भी दोस्ती नहीं करना चाहिए। अगर आपने ऐसे लोगों से दोस्ती की तो आपके लिए हानिकारक हो सकती है।

आलसी लोगों से
माना जाता है कि आलस्य हर इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन होता है। इसके कारण हमारे जीवन में आए कई अच्छे अवसर हाथ से निकल जाते है। आलस्य एक ऐसी चीज है। अगर कोई व्यक्ति आलस्य करता है तो अपनी जिम्मेदारियों को कभी भी पूरा नहीं कर सकता है।

साथ ही दुसरों के नजरों में गिर जाता है। साथ अगर ऐसे व्यक्ति को कोई शारीरिक समस्या हो जाती है तो वह तब भी आलस्य करता है जिसके कारण उसे कई बडी समस्या से गुजरना पडता है। अगर आप ऐसे लोगों के साथ रहेगे तो आप भी आलसी हो सकते है। इसीलिए ऐसे लोगों से दूर रहना चाहिए।

शराबी से
हमारे समाज की कई सीमाएं होती है। जिसमें हमें हमेशा बांधकर रहना चाहिए। अगर आपने इनका पालन न किया तो आप सभी की नजरों में गिर जाते हो साथ ही आपके परिवार को भी इसका भागी बनना पडता है।

इसी तरह शराबी होता है। जब वह शराब पी लेता है तो उसे इस बात का ज्ञान नहीं होता है कि वह इस समय जो कर रहा है वह सही है कि गलत। बस वह करता रहता है। अगर आप भी ऐसे लोगों का साथ करेगे तो आप भी इसी श्रेणी में आ जाएगे। जिसके काण आपकी और आपका परिवार का सिर शर्म से झुक जाएगा। इसलिए ऐसे लोगों से दूर रहना चाहिए।

गुस्सा करने वाला व्यक्ति
जो बेकार में कोई बात न होते हुए भी गुस्सा करते है। वह राक्षस के समान होते है। ऐसे लोग तो कभी बी किसी के निंदा या फिर हंसी के पात्र बन जाते है। अगर आपने ऐसे लोगों से दोस्ती करी तो आप भी हंसी का पात्र बनेगे साथ ही अपने परिवार को भी निचा दिखाएगे। इसलिए ऐसे लोगों से दूर रहना चाहिए।


यह एक ऐसा मंदिर जहाँ भक्तों को दिया जाता है अनोखे लड्डुओं का प्रसादयह एक ऐसा मंदिर जहाँ भक्तों को दिया जाता है अनोखे लड्डुओं का प्रसाद

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भगवान तिरुपति बालाजी के बारे में कौन नहीं जानता हैं। इन्हें भारत के सबसे अमीर देवताओं में से एक माना जाता हैं। माना जाता है कि भगवान तिरुपति बालाजी अपनी पत्नी पद्मावती के साथ तिरुमला में निवास करते हैं। ऐसे कहा जाता है कि यदि कोई भक्त कुछ भी सच्चे दिल से मांगता है, तो भगवान उसकी सारी मुरादें पूरी करते हैं। और वे लोग जिनकी मुराद भगवान पूरी कर देते हैं, वे अपनी इच्छा अनुसार वहां पर अपने बाल दान कर के आते हैं।

तिरुपति बालाजी मंदिर जितना अधिक अपनी अमीर होने के कारण प्रसिद्ध है। उतना ही यहां पर चढ़ने वाला खास भोग भी उतना ही लोकप्रिय हैं। इस मंदिर में जितनी भीड़ भगवान की दर्शन करने में लगती हैं। उतनी सी भीड़ यहां पर प्रसाद लेने के लिए लगती हैं। जिसे देवभोग मान कर लोग बड़ी श्रृद्धा के साथ लेकर इसके खाते हैं।

इस महाभोग लड्डू अभी से इतने प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि यह परंपरा 300 सालों से लगातार चली आ रही हैं। जिसे भगवान को भोग के रुप में चढाया जाता हैं। यह लड़्डू कोई साधारण लड्डू नहीं हैं, बल्कि अपने स्वाद, सूरत के साथ हर चीज में सबसे अलग हैं। जानिए इस लड्डू में आखिर ऐसा क्या खास हैं। इस पंरपरा की शुरुआत कब हुई।

सबसे अनोखे है यह लड्डू
तिरुपति बाला जी में मिलने वाला लड्डू एक ऐसा लड्डू हैं। जो दुनिया में कहीं और नहीं मिल सकता हैं। इस लड्डू को यहां पर श्रीवारी लड्डू के नाम से जाना जाता हैं। इस लड्डू के बारें में माना जाता है कि श्री वेंकटेश्वर के दर्शन के बाद उनके प्रिय भोग तिरुपति लड्डू लिए बिना दर्शन अधूरा रह जाता है। इसको ग्रहण किए बगैर आपका दर्शन अधूरा माना जाता हैं।

जानकारी के अनुसार माना हैं कि सबसे पहले इस पंरपरा की शुरुआत 2 अगस्त 1715 में शुरू की गई। इसके बाद यह लगातार जारी रही इस लड्डूओं को लेने के लिए आपको तिरुपति में अच्छी खासी भीड़ मिलेगी। जिसके कारण यहां पर एक खास सुविधा मुहैया कराई गई हैं। इसके लिए आप वीआईपी टिकट जो कि 300 रुपए की होती हैं। उसे ले उसके साथ आपको 2 लड्डू मिल जाते हैं। वही दूसरी ओर जो इसे लाइन में खड़े होकर खरीदना चाहते है। वो आपने अनुसार जितना चाहे उतना खरीद सकते हैं।

आपको मिलेंगे दो आकार के लड्डू
मंदिर की ओर से हर भक्त को प्रसाद के तौर पर लड्डू दिया जाता है। इनकी इतनी अधिक मात्रा होती हैं कि इन्हें किचन से मंदिर तक क्रेन द्वारा मंगाया जाता हैं। यहां पर आपको दो आकार के लड्डू 2 आकारों में उपलब्ध होता है। छोटा 174 ग्राम का और बड़ा 700 ग्राम का। इन लड्डूओं को बनाने के लिए लकड़ी के चूल्हे के साथ-साथ गैस का भी इस्तेमाल होता है।

बुधवार के दिन भगवान गणेश जी की पूजा का विशेष महत्व होता हैबुधवार के दिन भगवान गणेश जी की पूजा का विशेष महत्व होता है

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सर्वप्रथम पूज्य गणेशजी की पूजा तो हर दिन हर घर में की जाती है, लेकिन बुधवार के दिन इनकी पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन सच्चे मन से गणेश की पूजा की जाए तो आपकी हर मनोकामना पूर्ण होगी। शिव-पार्वती के पुत्र गणेश जी को हम कई नामों से जानते है जैसे कि सुमुख, एकदंत, लंबोदर, विकट, विघ्ननाशन, विनायक, धूमकेतु, गजानन है। जिन्हे हम कष्टो को हरने वाला मानते है।

गणेश जी अपने भक्तों से बड़ी जल्दी प्रसन्न होते है और उनकी इच्छाओं की पूर्ति भी करते है। अगर आप बुध ग्रह अशुभ स्थिति में है जिसके कारण आपको कई समस्याओं का सामना करना पड रहा है तो इस दिन गणेश जी की पूजा अवश्य करें। अगर आपकी कुंडली में बुध ग्रह का दोष है तो बुधवार को गणेश जी पूजा करने बुध ग्रह के दोष समाप्त हो जाएगे। जानिए बुधवार को गणेश जी को प्रसन्न करने के उपाय जिससे आपके घर में सुख-समृद्धि बनी रहे।

बुधवार के दिन सुबह स्नान कर गणेशजी के मंदिर जाकर उन्हें दूर्वा की 11 या 21 गांठ अर्पित करें। ऐसा करने से आपको जल्द ही शुभ फल मिलेगे। हिन्दू धर्म में गाय को अपनी माता के समान माना जाता है। उनकी सेवा करने से आपको सुख-शांति की प्राप्ति होती है। इसके लिए बुधवार के दिन गाय को हरी घास खिलाएं। जिससे कि सभी देवी-देवताओं की कृपा आप पर बनी रहेगी।

अगर आप के बुध ग्रह खराब है तो बुधवार के दिन किसी गरीब या किसी मंदिर में जाकर हरे मूंग का दान करे। इससे आपको फायदा मिलेगा।
सुख-समृद्धि के लिए किसी पंडित या ज्योतिषी के अनुसार अपने हाथ की सबसे छोटी उंगली में पन्ना रत्न धारण करें।

लक्ष्मी पूजन के समय रखें यह सावधानीलक्ष्मी पूजन के समय रखें यह सावधानी

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लक्ष्मी पूजन पूरे विधि-विधान से किया जाना अति आवश्यक है। तभी देवी लक्ष्मी की कृपा तुरंत ही प्राप्त होती है। पूजन के समय सबसे जरूरी है कि पूजा की थाली शास्त्रों के अनुसार सजाई जाए। पूजा की थाली के संबंध में शास्त्रों में उल्लेख किया गया है कि लक्ष्मी पूजन में तीन थालियां सजानी चाहिए।

पहली थाली में 11 दीपक समान दूरी पर रखें कर सजाएं।

दूसरी थाली में पूजन सामग्री इस क्रम में सजाएं- सबसे पहले धानी (खील), बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चंदन का लेप, सिंदूर कुमकुम, सुपारी और थाली के बीच में पान रखें।

तीसरी थाली में इस क्रम में सामग्री सजाएं- सबसे पहले फूल, दूर्वा, चावल, लौंग, इलाइची, केसर-कपूर, हल्दी चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक। इस तरह थाली सजा कर लक्ष्मी पूजन करें।

ये चीजें दिलाएंगी आपके घर में हो रही परेशानी से छुटकाराये चीजें दिलाएंगी आपके घर में हो रही परेशानी से छुटकारा

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फेंगशुई में घर की शांति के लिए कई टिप्स बताए गए हैं। जानकार कहते हैं कि वास्तु की तरह ही फेंगशुई से घर में शांति,सुकून का वास होता है। साथ ही कलह से मुक्ति भी मिलती है। फेंगशुई में विंड चाइम, लॉफिंग बुद्धा, प्लास्टिक के फूल, कछुआ, जहाज, सिक्कों आदि का बहुत अधिक महत्व है। इन्हें अपने घर या कार्यस्थल में किसी निर्धारित दिशा में रखकर आप अपना व्यवसाय बढ़ा सकते हैं और शांति-सुकून भी पा सकते हैं। आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही कारगार टिप्स के बारे में।

डाइनिंग रूम में न रखें टीवी: फेंगशुई के जानकार मानते हैं कि डाइनिंग रूम में टीवी नहीं रखना चाहिए। यह स्वास्थ्य के लिहाज से ठीक नहीं होता। इससे घर के मुखिया सहित अन्य सदस्यों को अक्सर स्वास्थ्य संबंधी परेशानी होती है। पुराना कबाड़ पैदा करता है कलह: वास्तु और फेंगशुई के जानकार कहते हैं कि घर में पुराना कबाड़ व बेकार चीजें नहीं रखनी चाहिए, इससे परिवार में कलह पैदा होता है। खासतौर से शादीशुदा जोड़े को तो अपने पलंग के नीचे पुराना कबाड़ बिल्कुल नहीं रखना चाहिए। अगर है, तो उसे उस जगह से हटा देना चाहिए।

ड्रॉइंग रूम के प्रवेश द्वार के कोने पर दाएं हाथ की ओर 6 छड़ वाली विंड चाइम लटकाना शुभकारी होता है। फेंगशुई के अनुसार ऐसा करने से परिवार में हमेशा खुशियां रहती हैं तथा परिवार के सदस्यों के बीच खुशी, शांति और प्यार हमेशा बना रहता है। बेडरूम में रखें लव बड्रस : बेडरूम में लव बड्र्स या बत्तख के जोड़ों के चित्र रखने से दंपति के संबंध मधुर बनते हैं। लॉफिंग बुद्धा की मूर्ति ड्राइंग रूम में ठीक सामने रखें, ताकि घर में प्रवेश करते ही आपकी नजर सबसे पहले उस मूर्ति पर पड़े. इससे सदस्यों के बीच मधुरता बनी रहती है और घर में हमेशा सुख-शांति का वातावरण रहता है।

लगाएं गोलाकार डाइनिंग टेबल : गोल आकार वाली डाइनिंग टेबल फेंगशुई में शुभ मानी जाती है। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि टेबल के साथ लगी कुर्सियों की संया कम होनी चाहिए।

अब हाथ की हथेली बताएगी की आप की किस्मत में है की नहीं धनअब हाथ की हथेली बताएगी की आप की किस्मत में है की नहीं धन

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कुछ लोग होते हैं जो हमेशा अपनी हर बात के लिए किस्मत को दोष देते हैं। कुछ भी हो इन्हें सिर्फ अपनी किस्मत पर ही रोना आता है। अगर आप भी यही समझते हैं कि आपकी किस्मत आपका साथ नहीं दे रही है तो प्रतिदिन यह उपाय करें। इस उपाय को करने से कुछ ही दिनों में निश्चित ही आपकी किस्मत चमक उठेगी।

उपाय
जब भी भोजन बनें, पहली रोटी को अलग निकालकर रख लें। इसके चार बराबर भाग कर लें। चारों भागों पर कुछ न कुछ मीठा जैसे- खीर, गुड़ या शक्कर आदि रख दें। इसका पहला भाग गाय को, दूसरा काले कुत्ते को, तीसरा कौए को और चौथा चौराहे पर रख दें। कुछ ही दिनों में आपको परिवर्तन दिखने लगेगा।

ऐसे हाथ वालों पर होती है पैसों की बरसात....
हमारे हाथों में केवल कोई एक लकीर ही हमें धनवान नहीं बना सकती। इंसान के हाथों में ऐसे कई योग होते हैं जो उसे कुबेर जैसा धनवान बनाते हैं। ऐसे लोगों के हाथों में कोई एक चिन्ह या निशान ही उन्हें पूरी तरह संपन्न नहीं बना सकता।

बल्कि पूरे हाथ के लक्षण देख कर ये बताया जा सकता है कि उस व्यक्ति पर लक्ष्मी कितनी मेहरबान है।हाथों में ऐसे कई लक्षण होते हैं जिनसे व्यक्ति की किस्मत चमक जाती है और उस पर धन की बरसात लगातार होती है।

आइए जानते हैं कि हाथों में वो ऐसे कौन से लक्षण है जो व्यक्ति को करोड़पति बना सकते हैं। - जब हथेली मध्य से ऊपर उठी हुई हो तो जातक समृद्ध होता है। ऐसी स्थिति में यदि सूर्य रेखा यानी रिंग फिंगर के नीचे के क्षेत्र से निकलने वाली रेखा और मस्तिष्क रेखा के साथ ही बृहस्पति यानी इंडैक्स फिंगर के नीचे वाला पर्व सुविकसित हो तो ऐसा व्यक्ति करोड़पति होता है।

- अंगूठा यदि मोटा और गद्देदार हो तो व्यक्ति सम्पन्न होगा।

- जब भाग्य रेखा यानी मिडिल फिंगर के क्षेत्र से निकलने वाली रेखा, सूर्य रेखा और बृहस्पति का संबंध बने और साथ ही मणिबंध जंजीरदार हो तो ऐसा व्यक्ति करोड़पति होता है।

- हथेली में वर्ग का चिन्ह हो साथ ही सूर्य रेखा और भाग्य रेखा के साथ ही बुध रेखा यानी लिटिल फिंगर के क्षेत्र से निकलने वाली रेखा सभी अच्छी स्थिति में हो तो व्यक्ति करोड़पति बनता है।

- जिसके हाथ में कलश, ध्वजा, मछली, चक्र, दंड आदि का चिन्ह होता है तो ऐसा व्यक्ति करोड़पति होता है।

- यदि हथेली में मस्तिष्क रेखा, बुध रेखा, और भाग्य रेखा से त्रिकोण बनता है तो व्यक्ति निश्चित ही अमीर होता है।

- जिसके हाथ में सुपष्ट जीवन रेखा, स्वस्थ्य भाग्य रेखा और बिना किसी दोष की लम्बी सूर्य रेखा होती है तो ऐसे में व्यक्ति के हाथ में अष्टलक्ष्मी योग बनता है। ऐसा व्यक्ति अतुल्यनीय धन सम्पति का स्वामी होता है।

- यदि सूर्य पर्वत यानी रिंग फिं गर के नीचे का क्षेत्र विकसित हो सूर्य रेखा हथेली के मध्य में आकर शुक्र पर्वत की ओर जाती है। रेखा पर किसी तरह की बाधा ना हो तो ऐसा व्यक्ति राजराजेश्वर योग होता है। ऐसे लोगों के पास अपार सम्पति होती है।

- यदि गुरू पर्वत यानी इंडैक्स फिंगर के नीचे वाले क्षेत्र पर क्रास का चिन्ह हो भाग्य रेखा , जीवन रेखा, और सूर्य रेखा सपष्ट हो तो साथ ही गुरू पर्वत के साथ ही मंगल पर्वत भी पूर्ण विकसित हो तो ऐसा व्यक्ति भी अपने जीवन में अत्याधिक सफलता और समृद्धि प्राप्त करता है।

 हस्तरेखा से जाने कब होगा विवाह और कब होगा भाग्योदय

ज्योतिष के विभिन्न रूपों में हस्तरेखाओं की गणना करना काफी दिलचस्प है। इसमें न तो जन्म समय या दिनांक की समस्या रहती है और न ही किसी जन्म पत्रिका की आवश्यकता, जहां है जैसे हैं की स्थिति में जातक का के भाग्योदय के बारे में बताया जा सकता है। यहां आपको ऐसे ही टिप्प दिए जा रहे हैं जिनके जरिए आप अपना भविष्य खासतौर पर वैवाहिक भविष्य पता कर सकते हैं।

विवाह रेखा एक से ज्यादा हो तो जो रेखा लम्बी हो उसे विवाह की रेखा समझना चाहिए। शेष छोटी रेखाएं प्रेम संबंधों या सगाई के बारे में बताती हैं। प्रधान रेखा यदि लम्बी हो लेकिन लहरदार होकर पतली हो जाए तो यह जीवन साथी के स्वास्थ्य के उतार-चढाव को दर्शाती है। सबसे छोटी अंगुली (किनिष्ठका) के नीचे बुध का स्थान माना गया है। यहीं से हृदय रेखा निकल कर बृहस्पति के स्थान की तरफ जाती है। अंगुली के मूल में और हृदय रेखा के मध्य के स्थान पर दिखाई देने वाली आड़ी रेखाओं से व्यक्ति के विवाह का आकलन किया जाता है। रेखाओं की संख्या, स्थिति और उनकी बनावट से विवाह की आयु, स्वरूप, विवाह की संख्या और जीवन साथी की शारीरिक बनावट का आकलन किया जाना चाहिए।

कुछ लोग प्रेम विवाह के लिए उक्त रेखाओं से गणना करते हैं। लेकिन वास्तव में प्रेम विवाह के लिए हथेली में बृहस्पति, शुक्र और मंगल के स्थान भी बहुत प्रभावी देखें गये हैं। हालांकि प्रेम विवाह होगा या नहीं, इसकी जानकारी के लिए बुध के स्थान पर पड़ी रेखाओं से काफी कुछ स्पष्ट किया जा सकता है। लेकिन प्रेम विवाह में आ रही अड़चने और प्रेमिका (या प्रेमी) के स्वभाव और चरित्र के बारे में शुक्र और बृहस्पति से अंदाजा लगाना ठीक रहेगा।

जब विवाह रेखा दूसरी प्रधान रेखाओं की तुलना में निम्न या उच्च दिखाई दे तो यह अंतरजातीय विवाह की सूचक है। कुछ विद्वान इसे अपने से धनी या निर्धन परिवार में विवाह होने का प्रतीक समझते हैं। अर्थात ऐसी रेखाएं बेमेल विवाह करवाती हैं। यदि इस प्रकार का कोई योग यदि दिखाई दे तो यह निश्चित है कि ऐसे व्यक्ति का विवाह सामान्य तो नहीं होगा।

खरीदे हैं अगर आपने नया वाहन तो विघ्नविनाशक गणेश का आशीर्वाद लेने जरूर जाएँखरीदे हैं अगर आपने नया वाहन तो विघ्नविनाशक गणेश का आशीर्वाद लेने जरूर जाएँ

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उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर से करीब 6 किलोमीटर दूर ग्राम जवास्या में भगवान गणेश का प्राचीनतम मंदिर स्थित है। इसे चिंतामण गणेश के नाम से जाना जाता है। गर्भगृह में प्रवेश करते ही हमें गौरीसुत गणेश की तीन प्रतिमाएं दिखाई देती हैं। यहां पार्वतीनंदन तीन रूपों में विराजमान हैं। पहला चिंतामण, दूसरा इच्छामन और तीसरा सिद्धिविनायक।

ऐसी मान्यता है कि चिंतामण गणेश चिंता से मुक्ति प्रदान करते हैं, जबकि इच्छामन अपने भक्तों की कामनाएं पूर्ण करते हैं। गणेश का सिद्धिविनायक स्वरूप सिद्धि प्रदान करता है। इस अद्भुत मंदिर की मूर्तियां स्वयंभू हैं। गर्भगृह में प्रवेश करने से पहले जैसे ही आप ऊपर नजर उठाएंगे तो चिंतामण गणेश का एक श्लोक भी लिखा हुआ दिखाई देता है... 
 
कल्याणानां निधये विधये  संकल्पस्य कर्मजातस्य।
निधिपतये गणपतये चिन्तामण्ये नमस्कुर्म:। 
 
चिंतामण गणेश मंदिर परमारकालीन है, जो कि 9वीं से 13वीं शताब्दी का माना जाता है। इस मंदिर के शिखर पर सिंह विराजमान है। वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार अहिल्याबाई होलकर के शासनकाल में हुआ। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चिंतामण गणेश सीता द्वारा स्थापित षट् विनायकों में से एक हैं। 
 
जब भगवान श्रीराम ने सीता और लक्ष्मण के साथ अवंतिका खंड के महाकाल वन में प्रवेश किया था तब अपनी यात्रा की निर्विघ्नता के लिए षट् विनायकों की स्थापना की थी। ऐसी भी मान्यता है कि लंका से लौटते समय भगवान राम, सीता एवं लक्ष्मण यहां रुके थे। यहीं पास में एक बावड़ी भी है जिसे लक्ष्मण बावड़ी के नाम से जाना जाता है। बावड़ी करीब 80 फुट गहरी है। 
 
मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित सीताराम ने बताया कि गणेश चतुर्थी, तिल चतुर्थी और प्रत्येक बुधवार को यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ रहती है। चैत्र मास के प्रत्येक बुधवार को यहां मेला भी भरता है। मनोकामना पूर्ण होने पर हजारों श्रद्धालु दूरदराज से पैदल चलकर मंदिर तक पहुंचते हैं। सीताराम पुजारी बताते हैं कि सिंदूर और वर्क से प्रात: गणेशजी का श्रृंगार किया जाता है, जबकि पर्व और उत्सव के दौरान दो बार भी लंबोदर गणेश का श्रृंगार किया जाता है।
 
पुजारी बताते हैं कि मनोकामना पूर्ण करने के लिए श्रद्धालु यहां मन्नत का धागा बांधते हैं और उल्टा स्वस्तिक भी बनाते हैं। मन्नत के लिए दूध, दही, चावल और नारियल में से किसी एक वस्तु को चढ़ाया जाता है और जब वह इच्छा पूर्ण हो जाती है तब उसी वस्तु का यहां दान किया जाता है।

नवविवाहित जोड़ों के साथ ही नए वाहन खरीदने वाले लोग यहां विशेष रूप से विघ्नविनाशक गणेश का आशीर्वाद लेने आते हैं। मंदिर में पीढ़ियों से दो परिवार के पंडित ही पूजा करते आ रहे हैं। वर्तमान में सीताराम पुजारी के अलावा कैलाशचंद्र पुजारी, शंकर पुजारी और मनोहर पुजारी मंदिर में पूजा करते हैं। 

पवित्र तीर्थ स्थलों का जल मिलाया गया है इस मंदिर को बनाने मेंपवित्र तीर्थ स्थलों का जल मिलाया गया है इस मंदिर को बनाने में

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भारत के हर कोने में भगवान गणेश जी के मंदिर हैं और उनके प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, उज्जैन का बड़ा गणेश मंदिर। यह मंदिर उज्जैन के प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर के पास ही है। इस मंदिर में भगवान गणेश को बड़े गणेश के नाम के जाना जाता है। इस मंदिर में भगवान गणेश की एक विशाल मूर्ति है। जिस कारण से इसे बड़े गणेश जी के नाम से पुकारा जाता है। यहां स्थापित गणेश जी की यह प्रतिमा विश्व की सबसे ऊँची और विशाल गणेश जी की मूर्तियों में से एक है।
गुड़ और मेथीदाने से बनी है यहां की गणेश मूर्ति

कहा जाता है कि इस गणेश प्रतिमा की स्थापना महर्षि गुरु महाराज सिद्धांत वागेश पं. नारायणजी व्यास ने करवाई थी। इस मंदिर की भगवान गणेश की प्रतिमा के निर्माण में अनेक प्रकार के प्रयोग किए गए थे। कहते हैं कि इस विशाल गणेश प्रतिमा को सीमेंट से नहीं बनाया गया था। इस मूर्ति की निर्माण ईट, चूने व बालू रेत से किया गया था। इस मूर्ति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस प्रतिमा को बनाने में गुड़ व मैथीदाने का मसाला भी उपयोग में लाया गया था।
मूर्ति में हैं सभी पावन तीर्थों का जल और मिट्टी

साथ ही इस मूर्ति को बनाने में सभी पवित्र तीर्थ स्थलों का जल मिलाया गया था और सात मोक्षपुरियों मथुरा, माया, अयोध्या, काँची, उज्जैन, काशी व द्वारिका की मिट्टी भी मिलाई गई है, जो की इस मूर्ति को और भी महत्वपूर्ण बनाती है। इस प्रतिमा के निर्माण में लगभग ढाई वर्ष का समय लगा था।

ऐसी है यहां की मूर्ति
यहां की गणेश प्रतिमा लगभग 18 फीट ऊंची और 10 फीट चौड़ी है और इस मूर्ति में भगवान गणेश की सूंड दक्षिणावर्ती है। प्रतिमा के मस्तक पर त्रिशूल और स्वस्तिक बना हुआ है। दाहिनी ओर घूमी हुई सूंड में एक लड्डू दबा है। भगवान गणेश के विशाल कान है, गले में पुष्प माला है। दोनों ऊपरी हाथ जपमुद्रा में व नीचे के दांये हाथ में माला व बांये में लड्डू का थाल है।

इस मंदिर में हैं कई देवी-देवता
इस मंदिर में भगवान गणेश के साथ-साथ कई देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं। मंदिर में माता यशोदा की गोद में बैठे हुए भगवान कृष्ण की प्रतिमा है और उनके पीछे शेषनाग के ऊपर बांसुरी बजाते हुए कृष्णजी की बहुत ही सुन्दर मूर्ति स्थापित है। मंदिर के बीच में पञ्चमुखी हनुमान चिंतामणि की एक सुंदर प्रतिमा भी है, कहा जाता है इस मूर्ति की स्थापना बड़े गणपति की स्थापना के भी पहले की गई थी। पञ्चमुखी यानी पांच मुखों वाले हनुमान के मुख इस प्रकार हैं: पूर्व में हनुमान मुख है और पश्चिम में नरसिंह मुख, उत्तर में वराह है तो दक्षिण में गरुड़ मुख। पांचवा मुख ऊपर की तरफ है जो कि घोड़े का हयग्रीव अवतार है। हाथों में अस्त्र-शस्त्र लिए श्री पञ्चमुखी हनुमान की यह प्रतिमा बहुत ही सुंदर है।


जो भी आएगा इस शहर में बिना दर्शन के जा ही नहीं सकता ऐसा है ये मंदिरजो भी आएगा इस शहर में बिना दर्शन के जा ही नहीं सकता ऐसा है ये मंदिर

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दक्षिणेश्वर मंदिर देवी माँ काली के लिए ही बनाया गया है। दक्षिणेश्वर माँ काली का मुख्य मंदिर है। भीतरी भाग में चाँदी से बनाए गए कमल के फूल जिसकी हजार पंखुड़ियाँ हैं, पर माँ काली शस्त्रों सहित भगवान शिव के ऊपर खड़ी हुई हैं। काली माँ का मंदिर नवरत्न की तरह निर्मित है और यह 46 फुट चौड़ा तथा 100 फुट ऊँचा है। कोलकाता के उत्तर में विवेकानंद पुल के पास दक्षिणेश्वर काली मंदिर स्थित है। यह मंदिर बीबीडी बाग से 20 किलोमीटर दूर है। 

दक्षिणेश्वर काली मंदिर - जहां हुए रामकृष्ण परमहंस
समूचा विश्व इन्हे स्वामी विवेकानन्द के गुरू के रूप में मानता है। कोलकाता में उनकी आराधना का स्थल आज भी लोगों के लिये श्रद्धा का केन्द्र है। 

दक्षिणेश्वर मन्दिर के बारे में बता रही हैं कामाक्षी:
कोलकाता में हुगली के पूर्वी तट पर स्थित मां काली व शिव का प्रसिद्ध मन्दिर है दक्षिणेश्वर। कोलकाता आने वाले प्रत्येक सैलानी की इच्छा यहां दर्शन करने की अवश्य होती है। यह मन्दिर लगभग बीस एकड में फैला है। वास्तव में यह मन्दिरों का समूह है, जिनमें प्रमुख हैं- काली मां का मन्दिर, जिसे भवतारिणी भी कहते हैं। मन्दिर में स्थापित मां काली की प्रतिमा की आराधना करते-करते रामकृष्ण ने ‘परमहंस’ अवस्था प्राप्त कर ली थी। इसी प्रतिमा में उन्होंने मां के स्वरूप का साक्षात्कार कर, जीवन धन्य कर लिया था। पर्यटक भी इस मन्दिर में दर्शन कर मां काली व परमहंस की अलौकिक ऊर्जा व तेज को महसूस करने का प्रयास करते हैं।

इस मन्दिर का निर्माण कोलकाता के एक जमींदार राजचन्द्र दास की पत्नी रासमणी ने कराया था। सन 1847 से 1855 तक लगभग आठ वर्षों का समय और नौ लाख रुपये की लागत इसके निर्माण में आई थी। तब इसे ‘भवतारिणी मन्दिर’ कहा गया गया। परंतु अब तो यह दक्षिणेश्वर के नाम से ही प्रसिद्ध है। दक्षिणेश्वर अर्थात दक्षिण भाग में स्थित देवालय। प्राचीन शोणितपुर गांव अविभाजित बंगाल के दक्षिण भाग में स्थित है। यहां के प्राचीन शिव मन्दिर को लोगों ने दक्षिणेश्वर शिव मन्दिर कहना शुरू किया और कालांतर में यह स्थान ही दक्षिणेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। आज यह केवल बंगाल या भारत ही नहीं, सम्पूर्ण हिन्दु मतावलम्बियों के लिये एक पुनीत तीर्थ स्थल है।

मन्दिर परिसर में प्रवेश करते ही लगभग सौ फुट ऊंचे शिखर को देखकर ही अनुमान लग जाता है कि यही मुख्य मन्दिर है। इसकी छत पर नौ शिखर हैं, जिनके बीचोंबीच का शिखर सबसे ऊंचा है। इसी के नीचे बीस फुट वर्गाकार में गर्भगृह है। अन्दर मुख्य वेदी पर सुन्दर सहस्त्रदल कमल है, जिस पर भगवान शिव की लेटी हुई अवस्था में, सफेद संगमरमर की प्रतिमा है। इनके वक्षस्थल पर एक पांव रखे कालिका का चतुर्भुज विग्रह है। गले में नरमुंडों का हार पहने, लाल जिह्वा बाहर निकाले और मस्तक पर भृकुटियों का मध्य ज्ञान नेत्र। प्रथम दृष्टि में तो यह रूप अत्यन्त भयंकर लगता है। पर भक्तों के लिये तो यह अभयमुद्रा वरमुद्रा वाली, करुणामयी मां है।

काली मन्दिर के उत्तर में राधाकान्त मन्दिर है, इसे विष्णु मन्दिर भी कहते हैं। इस मन्दिर पर कोई शिखर नहीं है। मन्दिर के गर्भ गृह में कृष्ण भगवान की प्रतिमा है। श्यामवर्णी इस प्रतिमा के निकट ही चांदी के सिंहासन पर अष्टधातु की बनी राधारानी की सुन्दर प्रतिमा है। राधाकृष्ण के इस रूप को यहां जगमोहन-जगमोहिनी कहते हैं। काली मन्दिर के दक्षिणी ओर ‘नट-मन्दिर’ है। इस पर भी कोई शिखर नहीं है। भवन के चारों ओर द्वार बने हैं। मन्दिर की छत के मध्य में माला जपते हुए भैरव हैं। नट मन्दिर के पीछे की ओर भंडारगृह व पाकशाला है। दक्षिणेश्वर के प्रांगण के पश्चिम में एक कतार में बने बारह शिव मन्दिर हैं। यह देखने में कुछ अलग से कुछ विशिष्ट से लगते हैं क्योंकि इन मन्दिरों का वास्तु शिल्प बंगाल प्रान्त में बनने वाली झोंपडियों सरीखा है। वैसे ही धनुषाकार गुम्बद इनके ऊपर बने हैं। सभी मन्दिर एक आकार के हैं। इनके दोनों ओर चौडी सीढियां बनी हैं। इन सभी में अलग-अलग पूजा होती है।

 इनके नाम हैं- योगेश्व्वर, यत्नेश्वर, जटिलेश्वर, नकुलेश्वर, नाकेश्वर, निर्जरेश्वर, नरेश्वर, नंदीश्वर, नागेश्वर, जगदीश्वर, जलेश्वर और यज्ञेश्वर। मन्दिरों के मध्य भाग में स्थित चांदनी ड्योढी से एक रास्ता हुगली घाट की ओर जाता है। जहां से हुगली का विस्तार देखते ही बनता है। मन्दिर प्रांगण के बाहर भी महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक दर्शनीय स्थान हैं जहां पर्यटक अवश्य ही जाते हैं। उत्तर की ओर बकुल तला घाट के निकट ‘पंचवटी’ नामक स्थान है। उस समय यहां बरगद, पीपल, बेल, आंवला और अशोक पांच पेड थे। परमहंस अक्सर यहां आते थे और यहां के सुरम्य वातावरण में वे समाधिस्थ हो जाया करते थे।

प्रांगण के सामने ही एक कोठी है जिसमें परमहंस रामकृष्ण निवास करते थे। यहीं पर उन्होनें अनेक वर्षों तक साधना की। उन्होंने वैष्णव, अद्वैत और तान्त्रिक मतों के अतिरिक्त इस्लाम व ईसाई मत का भी गहन अध्ययन किया और ईश्वर सर्वतोभाव की खोज की। कोठी के पश्चिम में नौबतखाना है। जहां रामकृष्ण की माता देवी चन्द्रामणी निवास करती थी। बाद के दिनों में मां शारदा ( परमहंस की अर्धांगिनी) भी वहीं रहने लगीं। कुछ वर्षों बाद रामकृष्ण, प्रांगण के उत्तरपूर्व में बने एक कमरे में रहने लगे थे जहां वे अंतकाल तक रहे। अब यहां एक लघु संग्रहालय है। यहीं दक्षिणेश्वर में एक युवक उनसे मिला था और उनके प्रभाव से, संसार को राह दिखाने विवेकानंद बन गया।

सामने ही हुगली के पश्चिमी तट पर ‘वेलूर मठ’ है। जहां रामकृष्ण मिशन का कार्यालय है। स्वामी विवेकानंद के बाद भी दक्षिणेश्वर में संत महात्माओं का आना जाना चलता रहा और यह स्थान अध्यात्म व भक्ति का प्रमुख केन्द्र बन गया।

पुत्र कामना और पति की दीर्घ आयु के लिए काफी मान्यता है इस मंदिर कीपुत्र कामना और पति की दीर्घ आयु के लिए काफी मान्यता है इस मंदिर की

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हिन्दू धर्मग्रंथों में कृष्णपक्ष की चंद्रोदय-व्यापिनी चतुर्थी को ‘संकष्टी गणेश चतुर्थी’ के व्रत का विधान निर्दिष्ट है. ऐसी मान्यता है कि इन चतुर्थियों के दिन उपवास रखकर गणोशजी का पूजन तथा रात्रि में चंद्रोदय हो जाने पर चंद्रमा को अर्घ्य देने के उपरांत व्रत का पारण करने से सब संकट दूर होते हैं. श्रीगणोश को ‘विघ्नेश्वर’ कहा जाता है. प्रत्येक कार्य के प्रारंभ में गणोशजी का स्मरण उसके निर्विघ्न संपन्न होने के उद्देश्य से किया जाता है. श्रीगणोश की पूजा से समस्त देवगणों का पूजन स्वत: हो जाता है, क्योंकि ये ‘गणपति’ कहलाते हैं. शिवपुराण के अनुसार, पार्वती-पुत्र गणोशजी की उत्पत्ति उमा की देह में लगे उबटन से हुई थी.

जबकि ब्रह्मवैवर्तपुराण के कथनानुसार, माता पार्वती को गणेशजी पुत्र के रूप में पुण्यक-व्रत के फलस्वरूप प्राप्त हुए थे. मान्यता जो भी हो, लेकिन पौराणिक ग्रंथ गणपति को प्रणव-स्वरूप बताते हैं अर्थात शिव-पार्वती का पुत्र बनने से पूर्व श्रीगणेश निराकार प्रणव (ॐ) के रूप में थे. शंकर के पुत्र के रूप में उनका गजमुख साकार हुआ.

पुत्र कामना और पति की दीर्घ आयु के लिए व्रत
‘संकष्टी गणेश चतुर्थी’ के दिन पुत्र कामना और पति की दीर्घ आयु के लिए महिलायें व्रत करती हैं. चन्द्रोदय के बाद चन्द्र विम्ब में भगवान गणोश के निमित्त अर्घ्य अर्पित कर व्रती महिलायें व्रत का पारण करती हैं.

धर्म की नगरी काशी के लोहटिया स्थित अति प्राचीन बड़ा गणेश मंदिर में हजारो गणेश भक्तों का हुजूम तड़के सुबह से ही उमड़ पड़ा. माना जाता है कि अपने आप में पूरे देश में यह अनूठा मंदिर है, जहा विघ्नहर्ता अपने विशाल रूप में त्रिनेत्रधारी रूप में विराजमान हैं.

बल, बुद्धि और विद्या के देवता गणेश जी के दर्शन के लिए भक्तो का ताता लगा रहा. भक्तों को पूरा विश्वास है कि आज के पावन दिन गणपति के दर्शन मात्र से उनके परिवार पर विघ्नहर्ता पूरे वर्ष अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखेंगे.

भोले की नगरी काशी में शिव पुत्र गणेश जी की महत्ता अन्य तीर्थो और स्थानों से कई गुना ज्यादा बढ़ जाती है. यही वजह है कि ‘संकष्टी गणेश चतुर्थी’ के दिन हर-हर महादेव से गुन्जायमान रहने वाली काशी नगरी जय गणेश देवा के उद्गोष के साथ पूरे दिन गूंजती रही.

यह चमत्कारी शिव मंदिर जो स्थापित है महाभारतकालीन समय सेयह चमत्कारी शिव मंदिर जो स्थापित है महाभारतकालीन समय से

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कानपुर देहात में एक छोटा-सा गांव है बनीपारा। इसी गांव में एक चमत्कारी शिव मंदिर है, जिसे बाणेश्वर के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि यह मंदिर महाभारतकालीन है। इस मंदिर से जुड़ी कई रोचक जानकारियां हैं, जो श्रद्धालुओं को दांतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर करती हैं।

मंदिर के पुजारी व समाजसेवी चतुर्भुज त्रिपाठी का कहना है कि यह मंदिर महाभारत काल से इस गांव में है और प्रलय काल तक रहेगा। राजा बाणेश्वर की बेटी ऊषा भगवान शिव की अनन्य भक्त थी। उनकी पूजा करने वह इतनी तल्लीन हो जाती थी कि अपना सब कुछ भूलकर आधी-आधी रात तक दासियों के साथ शिव का जाप करती थी। बेटी की भक्ति को देखकर राजा शिवलिंग को महल में ही लाना चाहते थे ताकि उनकी बेटी को जगंल में न जाना पड़े और उसकी पूजा आराधना महल में ही चलती रहे। राजा बाणेश्वर ने इसके लिए घोर तपस्या की।
 
कई वर्षों के बाद राजा की तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेशंकर ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। उनकी बात सुनकर राजा ने उनसे अपने महल में ही प्रतिष्ठित होने की प्रार्थना की। भगवान ने उनकी इस इच्छा को पूर्ण करते हुए अपना एक लिंग स्वरूप उन्हें दिया, किन्तु शर्त रखी कि जिस जगह वह इस शिवलिंग को रखेंगे, वह उसी जगह स्थापित हो जाएगा। 
 
शिवलिंग पाकर प्रसन्न राजा बाणेश्वर तुरंत अपने राजमहल की ओर चल पड़े। रास्ते में ही राजा को लघुशंका के लिए रुकना पड़ा। उन्हें जंगल में एक आदमी आता दिखाई दिया। राजा ने उसे शिवलिंग पकड़ने के लिए कहा और जमीन पर न रखने की बात कहीं।
 
उस आदमी ने शिवलिंग पकड़ तो लिया, लेकिन वह इतना भारी हो गया कि उसे शिवलिंग को जमीन पर रखना पड़ा। जब राजा बाणेश्वर वहां पहुंचे तो नजारा देख हैरान रह गए। उन्होंने शिवलिंग को कई बार उठाने की कोशिश की, लेकिन वह अपनी जगह से नहीं हिला। अंततः राजा को हार माननी पड़ी और वहीं पर मंदिर का निर्माण कराना पड़ा, जो आज भी बाणेश्वर के नाम से मशहूर है।

भगवान त्रिनेत्र गणेश करेंगे आपकी सभी मनोकामनाएं पूरीभगवान त्रिनेत्र गणेश करेंगे आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी

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हमारे देश में भगवान श्री गणेश के मन्दिरों की समृद्ध शृंखला में रणथंभौर दुर्ग के भीतर भव्य त्रिनेत्र गणेश मन्दिर का महत्व न केवल राजस्थानवासियों के लिये हैं बल्कि सम्पूर्ण देश में यह मन्दिर चर्चित एवं लोकप्रिय है। सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय से 13 किलोमीटर दूर रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान के भीतर विश्व ऐतिहासिक विरासत में शामिल रणथंभोर दुर्ग में भगवान गणेश का यह मंदिर स्थित है । इस मंदिर में जाने के लिए लगभग 1579 फीट ऊँचाई पर भगवान गणेश के दर्शन हेतु जाना पड़ता है । यह मंदिर विदेशी पर्यटकों के बीच भी आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। ऐतिहासिक एवं प्राचीन काल का होने के कारण इस मंदिर की बड़ी मान्यता है। आस्था और चमत्कार की ढेरों कहानियां खुद में समेटे यह मन्दिर प्रकृति एवं प्राचीनता का भी अद्भुत संगम है।

अरावली और विन्ध्याचल पहाडि़यों के मनोरम परिवेश एवं प्रकृति की गोद में बने इस मन्दिर तक पहुंचने के लिये भक्तों को रणथम्भौर दुर्ग के भीतर कई किलोमीटर पैदल चलने के बाद त्रिनेत्र गणेशजी के दर्शन होते हैं तो हृदय में श्रद्धा और आस्था का अगाध सागर उमड़ आता है, श्रद्धालु अपनी थकान त्रिनेत्र गणेशजी की मात्र एक झलक पाकर ही भूल जाते हैं।

भारत के कोने-कोने से लाखों की तादाद में दर्शनार्थी यहाँ पर भगवान त्रिनेत्र गणेशजी के दर्शन हेतु आते हैं और कई मनौतियां माँगते हैं, जिन्हें भगवान त्रिनेत्र गणेश पूरी करते हैं। भगवान गणेश शिक्षा, ज्ञान, बुद्धि, सौभाग्य और धन के देवता हैं। श्री गणेश सभी दु:ख, पीड़ा, अशुभता और कठिनाइयों को हर लेते हैं। जो भी यहाँ सच्ची आस्था और भक्ति के साथ आता है और सच्चे मन से कोई भी मनौती करता है तो उसकी हर मनोकामना पूरी करते हुए गणेशजी उसको ज्ञान, सौभाग्य और समृद्धि प्रदान करते हैं। मनोकामना करने वाले हर व्यक्ति की चाहे विवाह की कामना हो, व्यापार में उन्नति की कामना हो, ऊंच्चे अंकों से परीक्षा पास करने की कामना हो, ऐसी हर कामना को त्रिनेत्र गणेशजी पूरी करते हैं। न केवल राजस्थान बल्कि देश के सुदूर क्षेत्रों के श्रद्धालु लोग अपने घरों में होने वाले हर मांगलिक कार्य और विशेषत: विवाह का पहला निमंत्रण त्रिनेत्र गणेशजी को ही प्रेषित करते हैं। यहां विवाह के दिनों में हजारों वैवाहिक निमंत्रण त्रिनेत्र गणेशजी के नाम से पहुंचते हैं।

त्रिनेत्र गणेश मन्दिर से जुड़ी तमाम ऐतिहासिक एवं धार्मिक किंवदतियां भी है। इस गणेश मंदिर का निर्माण महाराजा हमीरदेव चैहान ने करवाया था लेकिन मंदिर के अंदर भगवान गणेश की प्रतिमा स्वयंभू है। राजा हमीर और अल्लाउद्दीन खिलजी के बीच में सन् 1299 से युद्ध अनेक वर्षों तक चला। इस युद्ध के दौरान राजा हमीर के स्वप्न मे भगवान गणेश ने उन्हें आश्वासन दिया कि उनकी विपत्ति जल्द ही दूर हो जाएगी। उसी सुबह किले की एक दीवार पर तिनेत्र गणेशजी की मूर्ति अंकित हो गयी। जल्द ही युद्ध समाप्त हो गया । राजा हमीरदेव ने गणेश द्वारा इंगित स्थान पर मूर्ति की पूजा की। किंवदंती के अनुसार भगवान राम ने जिस स्वयंभू मूर्ति की पूजा की थी उसी मूर्ति को हमीरदेव ने यहाँ पर प्रकट किया और गणेशजी का मन्दिर बनवाया। इस मंदिर में भगवान गणेश त्रिनेत्र रूप में विराजमान है जिसमें तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। पूरी दुनिया में यह एक ही मंदिर है जहाँ भगवान गणेशजी अपने पूर्ण परिवार, दो पत्नी- रिद्दि और सिद्दि एवं दो पुत्र- शुभ और लाभ, के साथ विराजमान है। भारत में चार स्वयंभू गणेश मंदिर माने जाते हंै, जिनमें रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेशजी प्रथम है। इस मंदिर के अलावा सिद्दपुर गणेश मंदिर गुजरात, अवंतिका गणेश मंदिर उज्जैन एवं सिहोर मंदिर मध्यप्रदेश में स्थित है।

यह भी कहा जाता है कि भगवान राम ने लंका कूच करते समय इसी गणेश का अभिषेक कर पूजन किया था। अत: त्रेतायुग में यह प्रतिमा रणथम्भौर में स्वयंभू रूप में स्थापित हुई और लुप्त हो गई।

एक और मान्यता के अनुसार जब द्वापर युग में भगवान कृष्ण का विवाह रूकमणी से हुआ था तब भगवान श्रीकृष्ण गलती से गणेशजी को बुलाना भूल गए जिससे भगवान गणेश नाराज हो गए और अपने मूषकों को आदेश दिया की विशाल चूहों की सेना के साथ जाओ और श्रीकृष्ण के रथ के आगे सम्पूर्ण धरती में बिल खोद डालो। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण का रथ धरती में धँस गया और आगे नहीं बढ़ पाये। मूषकों के बताने पर भगवान श्रीकृष्ण को अपनी गलती का अहसास हुआ और रणथम्भौर स्थित जगह पर गणेश को लेने वापस आए, तब जाकर श्रीकृष्ण का विवाह सम्पन्न हुआ। तब से भगवान गणेश को विवाह व मांगलिक कार्यों में प्रथम आमंत्रित किया जाता है। यही कारण है कि रणथम्भौर गणेश को भारत का प्रथम गणेश कहते है।

रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेशजी दुनिया के एक मात्र गणेश है जो तीसरा नयन धारण करते हैं । गजवंदनम् चितयम् में विनायक के तीसरे नेत्र का वर्णन किया गया है, लोक मान्यता है कि भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र उत्तराधिकारी स्वरूप अपने पुत्र गणेश को सौंप दिया था और इस तरह महादेव की सारी शक्तियाँ गजानन में निहित हो गई। महागणपति षोड्श स्त्रौतमाला में विनायक के सौलह विग्रह स्वरूपों का वर्णन है। महागणपति अत्यंत विशिष्ट व भव्य है जो त्रिनेत्र धारण करते हंै, इस प्रकार ये माना जाता है कि रणथम्भौर के त्रिनेत्र गणेशजी महागणपति का ही स्वरूप है।

हाल ही में रणथम्भौर की यात्रा के दौरान मन्दिर के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मुख्य पूजारीजी से अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त हुई। उन्होंने ही बताया कि भगवान त्रिनेत्र गणेश का शृंगार भी विशिष्ट प्रकार से किया जाता है। भगवान गणेश का शृंगार सामान्य दिनों में चाँदी के वरक से किया जाता है, लेकिन गणेश चतुर्थी पर भगवान का शृंगार स्वर्ण के वरक से होता है, यह वरक मुम्बई से मंगवाया जाता है। कई घंटे तक विधि-विधान से भगवान का अभिषेक किया जाता हैं। प्रतिदिन मंदिर में पुजारी द्वारा विधिवत पूजा की जाती है। भगवान त्रिनेत्र गणेश की प्रतिदिन पांच आरतियां की जाती है। गणेश चतुर्थी पर यहां भव्य मेला लगता है।

हिंदू धर्म की तरह ही जैन धर्म में भी चातुर्मास का महत्व हैहिंदू धर्म की तरह ही जैन धर्म में भी चातुर्मास का महत्व है

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हिंदू धर्म की तरह ही जैन धर्म में भी चातुर्मास का महत्व है। इस दौरान जैन धर्म के अनुयायी ज्ञान, दर्शन, चरित्र व तप की आराधना करते हैं। चातुर्मास जैन मुनियों के लिए शास्त्रों में नवकोटि विहार का संकेत है।

भगवान महावीर ने चातुर्मास को 'विहार चरिया इसिणां पसत्था' कहकर विहारचर्या को प्रशस्त बताया है। भगवान बुद्ध चातुर्मास के बारे में कहते हैं 'चरथ भिक्खवे चारिकां बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय' । ऐसा कहकर बौद्ध भिक्षुओं के लिए 'चरैवेति-चरैवेति' का संदेश दिया है। जैन मुनि चातुर्मास में तो चार महीने एक स्थान में रहते हैं पर शेष आठ महीने एक-एक महीने कर कम से कम आठ स्थानों में प्रवास कर सकते हैं।

कल्पसूत्र आदि अनेक सूत्रों में जैन-मुनियों की विहारचर्या की विशद चर्चा की गई है पर चातुर्मास काल में ‘वासासु परिसंवुडा’ के अनुसार वर्षाकाल में अपने आप को परिसंवृत होकर रहना पड़ता है। अर्थात् इस काल में वे ज्यादा घूमना-फिरना नहीं कर सकते।

चातुर्मास पर्व यानि चार महीने का पर्व जैन धर्म का एक अहम पर्व होता है। इस दौरान एक ही स्थान पर रहकर साधना और पूजा पाठ किया जाता है। वर्षा ऋतु के चार महीने में चातुर्मास पर्व मनाया जाता है।

जैन धर्म के अनुसार बारिश के मौसम में कई प्रकार के कीड़े, सूक्ष्म जीव जो आंखों से दिखाई नहीं देते वे सर्वाधिक सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में मनुष्य के अधिक चलने-उठने के कारण इन जीवों को नुकसान पहुंच सकता है।

इस दौरान जैन साधु किसी एक जगह ठहरकर तप, प्रवचन तथा जिनवाणी के प्रचार-प्रसार को महत्त्व देते हैं। चातुर्मास पर्व का महत्व जैन धर्म के अनुयायी वर्ष भर पैदल चलकर भक्तों के बीच अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य का विशेष ज्ञान बांटते हैं। चातुर्मास में ही जैन धर्म का सबसे प्रमुख पर्व पर्युषण पर्व मनाया जाता है।

मान्यता है कि जो जैन अनुयायी वर्ष भर जैन धर्म की विशेष मान्यताओं का पालन नहीं कर पाते वे इन 8 दिनों के पर्युषण पर्व में रात्रि भोजन का त्याग, ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय, जप-तप मांगलिक प्रवचनों का लाभ तथा साधु-संतों की सेवा में संलिप्त रह कर जीवन सफल करने की मंगलकामना कर सकते हैं।

यह एक ऐसा धर्म है जो ईश्वर के अस्तित्व को सर्वमान्य प्रमाण नहीं देतायह एक ऐसा धर्म है जो ईश्वर के अस्तित्व को सर्वमान्य प्रमाण नहीं देता

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दुनिया में सिर्फ हिंदू धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है, जिसमें नास्तिकता को भी मान्यता दी गई है। नास्तिकता को नास्तिकवाद अथवा अनीश्वरवाद भी कहते हैं।

नास्तिकता वह है जो सृष्टि का संचालन और नियंत्रण करने वाले किसी भी ईश्वर के अस्तित्व को सर्वमान्य प्रमाण नहीं देती और न ही स्वीकारती है।

वैसे से तो कई धर्म ग्रंथों में नास्तिक लोगों का जिक्र मिलता है। चार्वाक दर्शन भी उन्हीं में से एक है। यह पूरी तरह से नास्तिकता पर आधारित है। चार्वाक दर्शन भौतिकवादी नास्तिक दर्शन है। यह मात्र प्रत्यक्ष प्रमाण को मानता है और पारलौकिक सत्ताओं को यह सिद्धांत स्वीकार नहीं करता है।

चार्वक दर्शन का तर्क चार्वक ने दिया था। वह प्राचीन भारत के एक अनीश्वरवादी और नास्तिक तार्किक थे। चार्वक, बृहस्पति के शिष्य माने जाते हैं। चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र ग्रन्थ में भी उल्लेख किया है कि, 'सर्वदर्शनसंग्रह' यानी में चार्वाक का मत दिया हुआ मिलता है। पद्मपुराण में लिखा है कि असुरों को बहकाने के लिए बृहस्पति ने वेद विरुद्ध मत प्रकट किया था। ऐसा माना जाता है कि तभी से नास्तिकता की शुरूआत हुई।

वहीं, हिन्दू दर्शन में नास्तिक शब्द उनके लिये भी प्रयुक्त होता है जो वेदों को मान्यता नहीं देते। महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने एक बार कहा था, 'मैंने दुनिया घूमी हुई है। आज तक मुझे कहीं भी ऐसा आदमी नहीं मिला, जो सीना ठोककर कह सके कि, उसने ब्रह्म, आत्मा व ईश्वर को देखा है।'

गौतम बुद्ध के अनुसार, 'ज्ञान प्राप्त करने के प्रत्यक्ष व अनुमान दो ही प्रमाण होते हैं। इन दोनों से सिद्ध नहीं होता कि वेदों का रचयिता ब्रह्म जी थे।

ये प्रतिमाएं होंगी अगर घर में तो नहीं होंगी धन की कमीये प्रतिमाएं होंगी अगर घर में तो नहीं होंगी धन की कमी

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हिंदू घरों में बहुत सारे देवी-देवताओं की प्रतिमाएं और चित्रपट रखने का प्रचलन है। वास्तु के अनुसार ऐसा करना गलत है क्योंकि उन्हें सही तरीके से न रखने पर नकारात्मकता बढ़ती है। जिसका सीधा प्रभाव घर की सुख-समृद्धि और वैभव पर पड़ता है। लक्ष्मी कृपा चाहते हैं तो रखें कुछ बातों का ध्यान अन्यथा आप स्वयं दे रहे हैं अलक्ष्मी को निमंत्रण
घर के मंदिर में करेंगे यह काम तो देवी-देवता ब‌िगाड़ देंगे धन और स्वास्‍थ्य
 
भगवान श्री कृष्ण का बाल स्वरूप बैठी मुद्रा में रखना शुभ होता है। श्रीराधाकृष्ण का युगल स्वरूप खड़ी मुद्रा में भी रखा जा सकता है। 
 
जिस घर में एकाक्षी नारियल की पूजा होती है, वहां लक्ष्मी जी की कृपा होती है, अन्न व धन की कभी कमी नहीं आती। 
 
 घर में शिवलिंग न रखें, भगवान शिव की मूर्ति अथवा चित्रपट रखें। 
 
 पारिवारिक सदस्यों में प्रेम और अपनेपन की भावना बनी रहे इसके लिए राम दरबार की स्थापना करें। 
 
 सूर्य भगवान की तांबे की आकृति रखें। 
 
गणेश जी का वो स्वरूप लगाएं जिसमें उनकी सूंड उनके बाएं हाथ की तरफ घूमी हुई हो । सूंड में लड्डू होना चाहिए । ध्यान रहे कि चित्र या प्रतिमा में चूहा और लड्डू अवश्य हो। घर में बैठे तथा व्यवसायिक स्थल पर खड़े गणेश का स्वरूप लगाएं। खड़े गणेशजी के दोनों पैर जमीन पर हों। घर की उत्तर पूर्व दिशा में गणेश जी का स्वरूप लगाना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है । 
 
शंख जिसके घर में रहता है वहां सब मंगल ही मंगल होते हैं। लक्ष्मी स्वयं स्थिर होकर निवास करती है। जिस घर में उत्तम दक्षिणावर्ती शंख की पूजा होती है वह कृष्ण के समान सौभाग्यशाली तथा धनपति बन जाता है। जिस परिवार में शास्त्रोक्त उपायों द्वारा इसकी स्थापना की जाती है वहां भूत, प्रेत, पिशाच, ब्रह्म-राक्षस आदि द्वारा पहुंचाए जा रहे दुर्भक्षों का स्वत: ही समाधान होने लगता है। 
 
महालक्ष्मी के साथ ही धन के देवता कुबेर देव को पूजने से पैसों से जुड़ी समस्याएं दूर हो जाती हैं। इसी वजह से किसी भी देवी-देवता के पूजन के साथ ही इनका भी पूजन करना बहुत लाभदायक होता है। यदि अपने कर्तव्यों का निष्ठा से पालन करते हुए श्री कुबेर की उपासना की जाए और कुबेर यंत्र पूजा घर में स्थापित किया जाए तो वे निश्चित प्रसन्न होकर व्यापार वृद्धि, धन वृद्धि, ऐश्वर्य, लक्ष्मी कृपा प्रदान कर घर में सुख-समृद्धि एवं सौभाग्य का आशीर्वाद देते हैं।  


अब नहीं होगी घर में धन की कमी जब लाएंगे आप येअब नहीं होगी घर में धन की कमी जब लाएंगे आप ये

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आज के समय में बहुत से लोग अपने घर का निर्माण कार्य आदि वास्तुनुसार करते हैं अौर जीवन को खुशहाल बनाते हैं। वास्तु और हिंदू शास्त्रों के अनुसार घर में कुछ चीजें लाने से अन्न-धन अौर सौभाग्य में वृद्धि होती है। देवी लक्ष्मी को भी यह चीजें बहुत प्रिय हैं।

कमल का फूल
कमल के फूल को धार्मिक शास्त्रों में अत्यधिक महत्व दिया गया है। धन की देवी लक्ष्मी भी कमल के फूल पर विराजमान रहती हैं। घर में कमल के फूलों का कोई चित्र लगाया जाए तो अन्न-धन की कभी कमी नहीं रहेगी। शुक्रवार को देवी लक्ष्मी को कमल का फूल अर्पित करने से वह सदा अंग-संग रहती हैं।
 
महालक्ष्मी का चित्र
महालक्ष्मी का ऐसा चित्र घर में लाएं जिस पर वे बैठी मुद्रा में कमल के फूल पर विराजित हों और उनके हाथ से धन वर्षा हो रही हो। मां का ऐसा रुप आपके घर में भी सदा धन वर्षा करता रहेगा।
 
सोलह श्रृंगार का सामान
घर के मंदिर में नवदुर्गा को सोलह श्रृंगार का सामान अर्पित करना चाहिए। इससे धन, सुख-शांति में वृद्धि होती है। किसी सुहागन महिला को सोलह श्रृंगार का सामान भेंट करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है। 

मोर पंख
घर के पूजा घर में मोर पंख स्थापित करने से अमंगल टल जाता है, बुरी शक्तियों और प्रतिकूल चीजों के प्रभाव जोर नहीं पकड़ पाते। मोर पंख को घर के दक्षिण-पूर्व कोण में लगाने से धन की वृद्धि होती है।
 
सोने-चांदी के सिक्के
घर में कभी भी सोने-चांदी के सिक्के लाएं जिन पर देवी लक्ष्मी और श्री गणेश के चित्र अंकित हों फिर उन्हें अपनी तिजोरी में रखें।

अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं तो इस दिन करें पूजाअपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं तो इस दिन करें पूजा

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रविवार के दिन सूर्य पूजा अौर मंत्र का जाप करने से व्यक्ति की प्रत्येक मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। सूर्यदेव को पंचदेवों में से प्रमुख माना जाता है। इनके पूजन से ज्ञान, सुख, स्वास्थ्य, पद, सफलता, प्रसिद्धि आदि का प्राप्ति होती है। प्रतिदिन सूर्यदेव की पूजा करने से व्यक्ति में आस्था अैर विश्वास पैदा होता है। 
 
सूर्यपूजा के लाभ
सूर्यदेव के पूजन से व्यक्ति को प्रत्येक कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है अौर उसके शारीरिक, व्यवाहारिक अौर धैर्य का पता चलता है।
 
प्रतिदिन सूर्यदेव की पूजा करने से व्यक्ति निडर अौर बलवान बनता है।
 
सूर्यपूजा व्यक्ति को परोपकारी बनाती है।
 
जो व्यक्ति प्रतिदिन सूर्यपूजा करता है वह विद्वान, बुद्धिमान अौर मधुर वाणी वाला बनता है।
 
सूर्यदेव के पूजन से व्यक्ति कोमल अौर पवित्र आचरण वाला बनता है।
 
प्रतिदिन सूर्यदेव की पूजा करने से अंहकार, क्रोध, लोभ, इच्छा, कपट अौर बुरे विचारों का नाश होता है।
 
इस प्रकार करें सूर्यपूजा 
व्यक्ति को प्रत्येक दिन सूर्यदेव का पूजन करना चाहिए परंतु रविवार के दिन सूर्यदेव के पूजन अौर मंत्र का जाप करने से जीवन में सुख, अच्छे स्वास्थ्य अौर धन की प्राप्ति होती है।
 
सही तरीके से सूर्यदेव के पूजन से शुभ फल की प्राप्ति की जा सकती है। सुबह उठकर स्नानदि कार्यों से निवृत होकर सफेद वस्त्र पहनकर सूर्यदेव को नमस्कार करें। इसके बाद तांबे के पात्र में जल लेकर नवग्रह मंदिर में जाए अौर सूर्यदेव को लाल चंदन का लेप, कुमकुम, चमेली अौर कनेर के पुष्प अर्पित करें। सूर्यदेव के सम्मुख दीप प्रज्वलित करें अौर मन में सफलता अौर यश प्राप्ति की कामना करते हुए ऊँ सूर्याय नम: का जाप करते हुए सूर्यदेव को जल अर्पित करें। सूर्यदेव को जल अर्पित करने के पश्चात जमीन पर माथा टेककर इस मंत्र का जाप करें-
 
ऊँ खखोल्काय शान्ताय करणत्रयहेतवे। 
निवेदयामि चात्मानं नमस्ते ज्ञानरूपिणे।।
त्वमेव ब्रह्म परममापो ज्योती रसोमृत्तम्।
भूर्भुव: स्वस्त्वमोङ्कार: सर्वो रुद्र: सनातन:।। 
 
इसके पश्चात सूर्यदेव के मंदिर में पूजा आरती करके प्रसाद अर्पित करें। 

क्या कमाई के बाद भी घर में है धन का अभाव तो करें ये उपायक्या कमाई के बाद भी घर में है धन का अभाव तो करें ये उपाय

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पारिवारिक सदस्यों की कमाई के बाद भी घर में धन का अभाव होता है। घर में पैसों की बरकत नहीं होती। अधिक मेहनत करने पर भी आर्थिक तंगी रहती है। नियमित रूप से इन उपायों को करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। साथ ही पैसों की तंगी से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों के अनुसार इन उपायों को करने से सभी प्रकार की परेशानियों से छुटकारा पाया जा सकता है।
 
प्रतिदिन रात को सोने से पूर्व अपने सिर के पास तांबे के पात्र में जल भर रखें। सुबह शीघ्र उठकर जल के पात्र को अपने सिर के ऊपर से सात बार वारें। इसके पश्चात पात्र के जल को कांटेदार वृक्ष की जड़ में अर्पित कर दें।
 
सुबह शीघ्र उठकर स्नानादि कार्यों से निवृत होकर तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें लाल पुष्प, कुमकुम अौर चावल डालकर सूर्यदेव को जल अर्पित करें। जल अर्पित करते समय ऊँ सूर्याय नम: मंत्र का जप करें।ऐसा प्रतिदिन करने से व्यक्ति को समाज में प्रसिद्धि की प्राप्ति होती है।
 
शास्त्रों के अनुसार पीपल श्रीहरि का स्वरुप है अौर इसमें सभी देवी-देवताअों का वास होता है। जो लोग पीपल के वृक्ष का पूजन करते हैं अौर उस पर जल अर्पित करते हैं उन्हें सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं मिलती हैं।
 
पात्र में शुद्ध जल लेकर उसमें काले तिल डालें। अब इस जल से शिवलिंग का अभिषेक करें अौर साथ में ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करते रहें। अभिषेक करते समय मंत्र का जाप करते रहें अौर जल की धार पतली होनी चाहिए। इसके बाद फूल अौर बिल्व पत्र चढ़ाएं। इससे शुभ फल की प्राप्ति होती हैं।

कुंडली में शनि दोष या साढ़ेसाती अौर ढय्या हों तो प्रत्येक शनिवार किसी पवित्र नदी में काले तिल प्रवाहित करें। इस उपाय को करने से शनि के दोषों से छुटकारा मिलता है।
 
दूध में काले तिल डालकर पीपल के वृक्ष पर अर्पित करने से बुरा समय दूर हो सकता है।
 
राहु, केतु अौर शनि के बुरे प्रभावों को समाप्त करने के लिए काले तिल का दान करें। कालसर्प योग, साढ़ेसाती, ढय्या, पितृ दोष आदि से छुटकारा पाने के लिए भी ये उपाय किया जा सकता है। 
 
भगवान विष्णु अौर महालक्ष्मी की कृपा पाने हेतु सुबह उठकर सबसे पहले अपनी दोनों हथेलियों को देखना चाहिए।
 
पूजन के पश्चात घर के सभी कमरों में शंख अौर घंटी बजाने से नकारात्मक ऊर्जा अौर दरिद्रता घर से बाहर जाती है। घर में लक्ष्मी का आगमन होता है।
 
सभी परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए पीपल के नीचे छोटा शिवलिंग स्थापित करके उसकी नियमित पूजा करें।
 
हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए हनुमान चालीसा या सुंदर कांड का पाठ करें। सुबह के समय हनुमान जी को गुड़, नारियल, लड्डू का प्रसाद चढ़ाना चाहिए।
 
अभिषेक करते समय शिवलिंग को हथेलियों से रगड़ने पर किसी का भी भाग्य बदल सकता है।
 
मंगल दोष शांत करने के लिए पके चावलों से शिवलिंग का श्रृगांर करने के पश्चात पूजन करें।
 
घर अौर संतान से संबंधित बाधाअों को दूर करने के लिए प्रतिदिन शिवलिंग पर धतूरा चढ़ाएं। इस उपाय को करने से संतान को कार्यों में सफलता मिलती है।

इसका उपयोग करने से होंगी सभी परेशानियों का अंतइसका उपयोग करने से होंगी सभी परेशानियों का अंत

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तंत्र शास्त्र के अतंर्गत कई क्रियाएं की जाती हैं। इनको करने के लिए जिन वस्तुअों का प्रयोग किया जाता है वे देखने में तो साधारण होती हैं परंतु असर चमत्कारी होता है। इनका उपयोग साधारण व्यक्ति भी कर सकता है। इन वस्तुअों का प्रयोग विधि-विधान से करने पर प्रत्येक प्रकार की परेशानियों से छुटकारा मिलता है अौर संपूर्ण इच्छाएं पूरी होती हैं। 

काली हल्दी के उपाय
काली हल्दी के 9 दाने बनाकर उन्हें धागे में पिरोकर धूप, गूगल और लोबान से उनका शुद्धिकरण करके धारण करें। ऐसा करने से ग्रहों के दुष्प्रभावों, टोने- टोटके व नजर का प्रभाव नहीं होता।
 
नए कार्य में जाने से पूर्व काली हल्दी का टीका लगाकर जाए सफलता अवश्य मिलेगी।
 
किसी को आकर्षित करने के लिए प्रतिदिन काली हल्दी का टीका लगाएं।
 
गोमती चक्र के उपाय
कोर्ट-कचहरी में सफलता पाने के लिए वहां जाते समय घर के बाहर गोमती चक्र रखकर उस पर दाहिना पैर रखकर जाएं। 
 
शत्रु बढ़ने पर जितने अक्षर का शत्रु का नाम है, उतने गोमती चक्र लेकर उस पर शत्रु का नाम लिखें अौर उन्हें जमीन में दबा दें। ऐसा करने से दुश्मन पराजित हो जाएंगे।
 
लघु नारियल के उपाय
शुभ मुहूर्त में 11 लघु नारियल मां लक्ष्मी के चरणों में रखकर 'ऊँ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्नीं च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्' मंत्र का जप करें। इस मंत्र का 2 माला जाप करें। उसके बाद इन लघु नारियलों को लाल कपड़े में लपेट कर तिजोरी में रखें। अगले दिन किसी नदी या तालाब में बहा दें। जिससे लक्ष्मी घर में लक्ष्मी का स्थिर वास होता है।
 
11 लघु नारियल एक पीले कपड़े में बांधकर रसोई घर के पूर्वी कोने में बांधने से धन-धान्य की कमी नहीं होती अौर अन्न के भंडार भरे रहते हैं।
 
दक्षिणावर्ती शंख के उपाय
अन्न, धन अौर वस्त्रों के भंडार में दक्षिणावर्ती शंख रखने से इनमें कभी कमी नहीं होती। शयनकक्ष में रखने से शांति का अनुभव होता है।
 
दक्षिणावर्ती शंख में शुद्ध जल भरकर, व्यक्ति, वस्तु, स्थान पर छिड़कने से दुर्भाग्य, अभिशाप, तंत्र-मंत्र आदि का प्रभाव समाप्त होता है।
 
इसे घर में रखने से नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है अौर सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार होता है।
 
कमल गट्‌टे के उपाय
लक्ष्मी माता के चित्रपट पर कमल गट्टे की माला पहनाकर पवित्र नदी में विसर्जित करने से घर में लक्ष्मी का स्थिर वास होता है।
 
दरिद्रता से मुक्ति पाने के लिए प्रत्येक बुधवार को 108 कमलगट्टे के बीज लेकर घी के साथ एक-एक करके अग्नि में 108 आहुतियां दें।
 
एकाक्षी नारियल के उपाय
जिस घर पर एकाक्षी नारियल की पूजा होती है उनके पारिवारिक सदस्यों पर तांत्रिक क्रियाओं का प्रभाव नहीं होता अौर उन्हें मान-सम्मान, प्रतिष्ठा व यश की प्राप्ति होती है।
 
मुकद्दमे में सफलता प्राप्ति के लिए रविवार को एकाक्षी नारियल पर विरोधी का नाम लिखें अौर उस पर लाल कनेर का फूल रख दें। कोर्ट जाते समय फूल साथ लेकर जाने से फैसला पक्ष में होता है।
 
हकीक के उपाय
धन संबंधित समस्या से मुक्ति पाने हेतु किसी भी शुक्रवार को रात को हकीक की माला से 108 बार 'ऊं ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं लक्ष्मी वासुदेवाय नम:' मंत्र का जाप करें। 
 
किसी मंदिर में 11 हकीक पत्थर अर्पित करके कहें कि अमुक कार्य में सफलता मिले। ऐसा करने से उस कार्य में अवश्य विजय मिलती है।
 
मोती शंख का उपाय
बुधवार को सुबह स्नान करके साफ वस्त्र में अपने सम्मुख मोती शंख रखें। उसके बाद उस पर केसर से स्वास्तिक का चिह्न बनाएं फिर इस मंत्र का जाप करें-
 
श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:
 
मंत्र का जाप स्फटिक माला से करें। मंत्रोच्चार के साथ एक-एक चावल इस शंख में डालते जाएं। चावल के दाने टूटे हुए न हो। इस उपाय को लगातार 11 दिनों तक करें। प्रतिदिन एक माला का जप करें उन चावलों को एक सफेद रंग के वस्त्र की थैली में रखकर 11 दिनों के पश्चात चावल के साथ शंख को भी उस थैली में रखकर तिजोरी में रखें।

इत्र के प्रभाव से पारलौकिक शक्तियों को भी वशी भूत किया जा सकता हैइत्र के प्रभाव से पारलौकिक शक्तियों को भी वशी भूत किया जा सकता है

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प्राचीनकाल से लोग इत्र का प्रयोग करते आ रहे हैं। इत्र के प्रभाव से तंत्र में वशीकरण को संभव किया जाता है। इत्र में चुंबकीय प्रभाव होता है जिससे न केवल इंसानों बल्कि, पारलौकिक शक्तियों व देवी-देवताओं को भी आकर्षण में बांध कर वशीभूत किया जा सकता है।
 
कर्म से भाग्य बनता-बिगड़ता है किंतु कभी-कभी कई ऐसी भी बातें होती हैं जिनसे भाग्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। भाग्य ‘सोने’ की तरह है जिस प्रकार सोने में स्वयं चमक होती है किंतु उसे चमकाने के लिए अनेक वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है उसी प्रकार भाग्य को चमकाने में भी इत्र का प्रयोग किया जाता है।
 
पैसों की कमी दूर करने के लिए भूरे रंग का पर्स रखें। चार नोटों पर चंदन का इत्र लगाएं, उन्हें खर्च न करें।
 
घर के मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं पर चंदन, कपूर, चंपा, गुलाब, केवड़ा, केसर और चमेली का इत्र चढ़ाने से उनकी कृपा प्राप्त होती है।
 
दफ्तर के कर्मचारियों को अपने आकर्षण में बांधने के लिए मोगरा, रातरानी अथवा चंदन का इत्र लगाएं। सभी आपके प्रभाव में रहेंगे।
 
शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले शुक्रवार को लक्ष्मी मंदिर में इत्र और सोलह श्रृंगार का सामान अर्पित करें। दांपत्य जीवन में प्रेम बढ़ेगा और घर में लक्ष्मी कृपा बनी रहेगी।
 
मंगलवार को शाम 5 बजे के बाद हनुमान जी पर केवड़े का इत्र छिड़के और साथ में हनुमान चालीसा का पाठ करते रहें। संकटमोचन सदा आपकी रक्षा करेंगे।
 
बुधवार और बुध नक्षत्र में पैदा हुए जातक चमेली का तेल अथवा इत्र पीपल के पेड़ पर छिड़के। हर तरह की समस्या का होगा अंत।
 
धन से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है तो सात शुक्रवार अपनी धर्मपत्नी के हाथ से सुहागन महिलाओं को लाल वस्तुएं और इत्र भेंट में दें।
 
मनचाहा जीवनसाथी हो पाना या प्रेम विवाह में आ रही बाधाओं को हो दूर भगाना। महिला अथवा पुरूष किसी भी मंदिर में सफेद कपड़े पहन कर जाएं गुलाब अथवा चमेली का इत्र अर्पित करें।  
 
धन व ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए श्री सुक्त से महालक्ष्मी को इत्र चढ़ाएं। प्रतिदिन इस इत्र को लगाकर घर से निकले, कार्य व्यवसाय में वृद्धि होगी। 

घर-परिवार से अन्न-धन की कमी दूर करते हैं ये सामान
भादों में श्री कृष्ण का मोर पंख दिलाएगा दुर्भाग्य से मुक्ति, लॉकर भरने के लिए करें प्रयोग
तंत्र क्रिया में काम आती हैं ये चीजें, परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए करें उपाय
शाम ढलते ही करें ये काम, मिलेगा अन्न-धन का सुख
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ज्योतिष उपायों से घटा सकते हैं वजन, पेट संबंधित रोगों से मिलेगी निजात

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